26 मार्च 2015

हार पर अपना आपा न खोयें-हिन्दी लेख(har par apna aapa n khoyen-hindi article on world cricket cup in australia)




          बीसीसीआई की क्रिकेट टीम एसीबी से-प्रचार माध्यम इन दोनों के इंडिया और आस्ट्रेलिया की टीमें कहते हैं-हार गयी। प्रचार माध्यमों ने आठ देशों के खेल के नाम से खेली जाने वाली अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता को विश्व स्तरीय प्रचार कर भारतीय जनमानस को खूब लुभाया।  जब तक कमजोर टीमों के सामान्य तथा बड़ी टीमों के कमजोर प्रदर्शन से बीसीसीआई की टीम जीतती रही भारतीय जनमानस के उल्लास को प्रचार माध्यम अपने विज्ञापनों की कमाई से भुनाते रहे।  वैसे हमारा मानना है कि क्रिकेट मैच भी अब पहले पटकथा लिखकर ही उसी तरह खेले जाते हैं जैसे फिल्म और टीवी धारावाहिक बनते हैं।  फिल्म और क्रिकेट के प्रायोजक संभवतः एक ही समूह के लगते हैं क्योंकि अक्सर देखा गया है कि किसी भी तूफानी बल्लेबाज के साथ समकालीन फिल्मी अभिनेत्री का इश्क का प्रसंग जरूर सामने आता है।
          उस समय प्रचार माध्यम खबरों का चटखारे लेकर सुनाते हैं।  लोग आकर्षित होते हैं। इस बार दावा उल्टा पड़ गया।  अब खराब खेल से नाराज लोग खिलाड़ी अभिनेत्री के प्रेम प्रसंग पर मर्यादा से बाहर जाकर टिप्पणियां कर रहे हैं। यह अनुचित है पर सवाल यह है कि लोगों को इस तरह उकसावे के पीछे प्रचार माध्यम से जुड़े लोगों के साथ ही संबंधित पक्ष जिम्मेदार नहीं है? जब तक सब ठीक चल रहा था तब जनमानस के सामने यह प्रसंग परोसने में उन्हीं लोगों की भूमिका थी जो अब अमर्यादित टिप्पणियों से नाराज हो रहे हैं।

          आखिरी बात क्रिकेट मैच देखने के शौकीनों से! हम भी पुराने शौकीन रहे हैं। एक बार सट्टेबाजी तथा फिक्सिंग का प्रकरण सामने आया तो विरक्त हो गये।  आज भी हम मैच देखते हैं पर वैसे ही जैसे एक फिल्म देखते हैं। इस खेल में देशभक्ति का भाव रखना ठीक नहीं है क्योंकि यह व्यवसाय है जिसे करने वाले केवल जनमानस को बहलाकर उसकी जेब हल्का करने से मतलब रखते हैं। हमने देखा कि अनेक लोग सर्वशक्तिमान के दरबार में जाकर बीसीसीआई की टीम की जीत की प्रार्थना कर रहे थे।  हमने एक चैनल पर सुना था कि आस्ट्रेलिया सट्टेबाजों की पंसदीदा की टीम है तो चिंता हुई क्योंकि हमने कभी यह नहीं देखा कि उनके विपरीत किसी मैच का निर्णय हुआ हो ।  हमने शुरुआत में मैच देखा तो लगा कि एसीबी की टीम बीसीसीआई  के सामने इतना कठिन लक्ष्य रखेगी कि  मुश्किल होगी।  दूसरी पारी में जब प्रारंभिक जोड़ी आगे बढ़ रही तो हमें लगा कि सट्टेबाजों की पंसदीदा टीम का बिस्तरा बंध जायेगा जो कि हमारे लिये एक आश्चर्य होगा।  बहुत जल्दी सब पलट गया। हमने अपने मोबाइल पर स्कोर देखना बंद कर दिया-अब हम टीवी पर जीवंत प्रसारण देखकर समय खराब नहीं करते। इसलिये सभी लोगों को सलाह है कि वह इस हार की झटके से बाहर निकलें।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

22 मार्च 2015

इस धरती पर देव और असुर दोनों ही रहते हैं-हिन्दी चिंत्तन लेख(is dharati par dev aur asur donon he rahte hain-hindi thought article)



हिन्दी टीवी समाचार चैनल जिस तरह जिस तरह धर्म को लेकर विवादास्पद बयानों को प्रचार के साथ ही उन पर बहसें कर रहे हैं उससे तो ऐसा लगता है कि समाज में उत्तेजना का वातावरण वह अपने विज्ञापनों के प्रसारण के बनाये रखना चाहते हैं। अनेक धर्मों के कथित झंडाबरदार सौ लोगों में कोई कथित जहरीला बयान देते हैं। अगर मीडिया उनका स्वयं प्रचार न करे तो देश के बाकी हिस्सों में तो छोड़िये वहां मौजूद सौ लोग भी उसे याद रखें यह संभव नहीं है। मगर मीडिया पहले उस बयान से सनसनी फैलाते हैं और फिर शुरु होता है रुदन जिसे हम बहस भी कहते हैं।
          अभिव्यक्ति की आजादी सभी को है पर किसी की विवादास्पद अभिव्यक्ति को देश भर में प्रचारित करने पर अध्यात्मिक ज्ञान साधकों तथा समझदार लोगों को आपत्ति हो सकती है।
          आखिरी बात यह कि भारतीय धर्मों के अंधविश्वास, दोष तथा पांखड यहां पास होने के कारण हमें दिखते हैं। बाहरी धार्मिक विचाराधारायें एक तरह से दूर के ढोल सुहावने की तरह अच्छीलगती हैं।  वरना तो इस धरती पर शायद ही कोई ऐसी धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक विचार धारा हो जो सर्वगुणसंपन्न हो पर शायद इसलिये हमारे प्रचार कर्मी उसे देखने की बजाय अपने ही देश की विचारधाराओं पर अपने शाब्दिक आक्रमण कर इस टूट पड़ते हैं जैसे कि उनका बस चले तो सब एक ही दिन में समाज का सुधार कर डाले। इतना ही नहीं अनेक स्थानीय कारणों से हुए विवाद, तोड़फोड़ तथा तनाव को धार्मिकता से जोड़कर दिखाने से पूरे विश्व में जो भारत की छवि बन रही है उस पर भी उनका ध्यान नहीं है।  एक बात समझ में नहीं आ रही कि भारतीय प्रचार कर्मी अपना व्यवसायिक धर्म निभा रहे हैं या फिर उनके अंदर अंतर्राष्ट्रीय सम्मान पाने का वह मोह है जो भारत की धर्मिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल रचना करने पर मिलता है। बहरहाल इतना तय है कि उनके इस व्यवहार से भारतीय धर्मों के अनुयायी यह तो मानने लगे हैं कि कहीं न कहीं अधिकतर प्रचार माध्यम विदेशी प्रभाव से संचालित हैं।
एक योग तथा ज्ञान साधक के रूप में हमारा मानना है कि मानव समाज में असुर तथा दैवीय प्रकृत्ति के लोग होते हैं और रहेंगे।  दैवीय प्रकृत्ति के लोगों का यह दायित्व है कि वह अपनी दैहिक तथा अध्यात्मिक शक्ति से उनका प्रतिकार करते रहें।  जब भारत की बात है तो भला यह दावा कौन करता है कि सभी यहां देवता बसते हैं?  यह दावा तो विदेशी विचाराधाराओं के विद्वानों का ही रहता है कि वह सारे संसार में देवता ही बसायेंगे। असुरों को परास्त कर सर्वशक्तिमान कों प्रसन्न करने का दावा हमारे यहां कोई नहीं करता। हां, उनसे समाज की रक्षा का दायित्व सभी का है पर असुर इस धरती से मिट जायेंगे यह सपना हमारे यहां नहीं देखा जाता।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

15 मार्च 2015

बाबा रामदेव और श्रीरवि शंकर योग साधना के चरमोत्कर्ष रूप का प्रमाण-हिन्दी चिंत्तन लेख(Baba ramdev aur shri ravi shankar yoga sadhana ke charmotkarsh roop ka praman-hindi thought article)



          आज बाबा रामदेव का एक टीवी चैनल पर साक्षात्कार देखा।  हम जैसे योग  साधक और गीता पाठक के लिये यह महत्वपूर्ण नहीं है कि वह किस विषय पर क्या बोल रहे हैं? वरन् हमारी दिलचस्पी इस बात में रहती है कि चर्चित विषय पर अपनी गहन दृष्टि संक्षिप्त तथा सांकेतिक शब्दों में व्यक्त करते हैं। उनके मुख पर तेज तथा वाणी का प्रभाव हमारे लिये रुचिकर विषय रहता है। तब यह कहना ही पड़ता है। बाबा रामदेव योग साधना के चरमोत्कर्ष रूप का प्रमाण है। एक ग्रामीण परिवार में जन्मा बालक भी योग माता की कृपा से वैश्विक स्तर पर किस तरह महान छवि बना सकता है इससे यही प्रमाणित होता है।
          अनेक लोग बाबा पर योग को व्यवसायिक होने का आरोप लगाते हैं।  अनेक विद्वान उनके पतंजलि योग संस्थाना बना लेने पर नाखशी दिखाते हैं।  कई लोग तो यह कहते हैं कि किसी योगी को माया से मतलब नहीं रखना चाहिये जबकि वह चारों तरफ उससे घिरे हैं। हमारा मानना है कि जिस तरह देह के संचालन के लिये सत्यरूपी आत्मा होना आवश्यक है उसी तरह माया भी उसकी साथी है। अंतर इतना है कि धनिक लोग माया के पीछे चाकर की तरह लगे रहते हैं जबकि संतों के पास वह दासी बनकर स्वयं जाती है। दूसरी बात यह कि बाबा रामदेव ने जो संपत्ति कमाई उसका वह उपभोग अपना प्रभाव बढ़ाने या उसे दिखाने में नहीं करते वरन् कहीं न कहीं उनसे जुड़े लोग ही उससे लाभान्वित हैं। आज भी उनकी छवि एक महान योगाचार्य की है।
          इस लेखक ने लगभग 13 वर्ष पूर्व योग साधना का अभ्यास प्रारंभ किया था। भारतीय योग संस्थान का एक स्थानीय शिविर में जब यह अभ्यास होता तब हास्यासन के समय अनेक उद्यान में घूम रहे लोग अजीब दृष्टि से देखते थे। इतना ही नहीं कभी घर में सिंहासन या हास्यासन करने पर बाहर से देखने वाले लोग भी हैरान होकर देखते थे। कालांतर में जब बाबा रामदेव के प्रचार के बाद योग साधना ने इतना महत्व प्राप्त कर लिया कि अब सिंहासन तथा हास्यासन पर कोई परेशान होता नहीं दिखता।  इतना ही नहीं अनेक पार्कों में लोग योग साधना संकोचरहित होकर करते हैं क्योंकि अब उन्हें आश्चर्य से देखने वाली आंखें सहजता से देखने की अभ्यस्त हो चुकी हैं।
          बाबा रामदेव के साथ ही श्रीरविशंकर भी योग साधना के क्षेत्र में बहुत काम कर रहे हैं।  उनके भी कुुछ कार्यक्रमों में जाने का अवसर मिला। बाबा रामदेव और श्री रविशंकर के कार्यक्रमों में हमने कभी योग साधना नहीं की पर वहां जाकर जो अध्यात्मिक प्रसाद प्राप्त होता है वह अन्य विवाह, सम्मेलन या पार्टियों में नहीं मिल सकता।  सामान्य कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के बाद उस मोर की तरह हो जाती है जो नाचने के बाद अपने पैर गंदे देखकर रोता है जबकि योग कार्यक्रम में शामिल होने के बाद मन में स्फूर्ति पैदा होती है।
          कहने का अभिप्राय यह है कि योग विद्या से संपर्क होने पर स्वभावगत परिवर्तन होते हैं। यही कारण है कि बाबा रामदेव और श्रीरविशंकर के व्यवसायों पर वही लोग प्रतिकूल टिप्पणियां करते हैं जिनके अंदर योग की शक्ति का ज्ञान नहीं है। जबकि योगभ्यास करने वाले लोग भले ही इन महानुभावों के शिष्य न हों पर उनकी आलोचना नहीं करते।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

2 मार्च 2015

बादशाह और आम इंसान-हिन्दी कविता(badshah aur aam insan-hindi poem)



बादशाहों का राज

यूं ही चलता है

आम इंसान अपनी जिंदगी की

जंग अपनी दम पर लड़ता है।



सपने जगाते हैं

राज के रखवाले

कोई सवाल कर नहीं सकता

जवाब में भी जड़ता है।



कहें दीपक बापू हुकमत का

खजाना बढ़ाना आम इंसानों की

जिम्मेदारी होती

भले ही इधर भूख हो

उधर अन्न सड़ता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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